श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.22.17 
ततो जलाशयात् सर्वा दारिका: शीतवेपिता: ।
पाणिभ्यां योनिमाच्छाद्य प्रोत्तेरु: शीतकर्शिता: ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; जल-आशयात्—नदी में से बाहर; सर्वा:—सभी; दारिका:—युवतियाँ; शीत-वेपिता:—जाड़े से काँपती; पाणिभ्याम्—अपने हाथों से; योनिम्—अपने गुप्त अंग को; आच्छाद्य—ढककर; प्रोत्तेरु:—बाहर आगईं; शीत-कर्शिता:— जाड़े से पीडि़त ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् कड़ाके की शीत से काँपती सारी युवतियाँ अपने अपने हाथों से अपने गुप्तांग ढके हुए जल के बाहर निकलीं।
 
तात्पर्य
 गोपियों ने कृष्ण को आश्वस्त किया था कि वे उनकी नित्य दासियाँ हैं और उनका कहना मानने को तैयार हैं अत: वे अपनी ही बातों से हार खा चुकी थीं। उन्होंने सोचा कि यदि वे विलम्ब करती हैं, तो इस बीच अन्य कोई आ सकता है, जो उनके लिए असह्य होगा। गोपियाँ कृष्ण से इतना अधिक प्रेम करती थीं कि इस विषम स्थिति में भी उनके प्रति उनका अनुराग बढ़ता जा रहा था और वे उनके सान्निध्य में रहने के लिए और भी उतावली हो रही थीं। ऐसी विषम परिस्थिति में उन्होंने अपने आपको नदी में डुबो देने का भी विचार नहीं किया।

वे इस निष्कर्ष पर पहुँचीं कि अपनी दुविधा त्यागकर अपने प्रिय कृष्ण के पास जाने के अतिरिक्त उनके पास कोई चारा न था। इस तरह जब गोपियाँ परस्पर आश्वस्त हो लीं कि कोई अन्य विकल्प नहीं है, तो वे कृष्ण से मिलने के लिए जल से निकलकर बाहर आ गईं।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥