सबसे बड़ा अपराध तो भगवान् कृष्ण के कार्यकलापों की नकल करना है। भारत में प्राकृत सहजियों का एक वर्ग है, जो कृष्ण के इन कार्यकलापों की नकल करता है और कृष्ण-पूजा के नाम पर नग्न तरुणियों का भोग करना चाहता है। इस्कान आन्दोलन धर्म के इस उपहास का डटकर विरोध करता है क्योंकि मनुष्य के लिए भगवान् का हास्यास्पद अनुकरण सबसे बड़ा अपराध है। इस्कान आन्दोलन में सस्ते अवतारों का अभाव है और इस आन्दोलन का कोई भी भक्त अपने को कृष्ण के पद तक ऊपर नहीं उठा सकता। पाँच सौ वर्ष पूर्व भगवान् कृष्ण श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए जिन्होंने विद्यार्थी जीवन में कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया और २४ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया जो आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत है। चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की प्रेमाभक्ति के अपने व्रत को निबाहने के लिए स्त्री संसर्ग से दृढ़ता के साथ दूर रहते थे। जब ५,००० वर्ष पूर्व कृष्ण स्वयं प्रकट हुए थे तो उन्होंने ये अद्भुत लीलाएँ प्रदर्शित की थीं जो हमारे चित्त को आकर्षित करती हैं। हमें चाहिए कि ईश्वर द्वारा सम्पन्न की गई ऐसी लीलाओं के विषय में सुनकर न तो ईर्ष्या करें, न चकित हों। ऐसा हमारे अज्ञान के कारण है क्योंकि यदि हम इन कार्यों को करने का प्रयास करें तो हमारे शरीर कामासक्त हो जायेंगे। किन्तु कृष्ण परब्रह्म हैं इसलिए वे किसी तरह की भौतिक इच्छा से तनिक भी विचलित नहीं होते। इस तरह यह घटना जिसमें गोपियाँ सारी नैतिकता के मानदण्ड को ताक पर रखकर अपने सिर के ऊपर हाथ जोडक़र नमस्कार करके कृष्ण के आदेश का पालन करती हैं शुद्ध भक्ति का उदाहरण है, धार्मिक नियमों की कोई त्रुटि नहीं है। वस्तुत: गोपियों का समर्पण सर्व धर्म की सिद्धि है जैसाकि श्रील प्रभुपाद भगवान् श्रीकृष्ण में बताते हैं “गोपियाँ सीधीसादी जीव थीं और कृष्ण जो कुछ भी कहते उसे वे सच मानतीं थीं। वरुणदेव के कोप से अपने को बचाने तथा अपने व्रतों की पूर्ति करने और अन्ततोगत्वा अपने आराध्य कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए ही उन्होंने उनके आदेश का तुरन्त पालन किया। इस प्रकार वे कृष्ण की सर्वोच्च प्रेमिकाएँ तथा परम आज्ञाकारिणी सेविकाएँ बन सकीं। “गोपियों की कृष्णभावना अतुलनीय है। वास्तव में गोपियों को न तो वरुण की, न ही किसी अन्य देवता की परवाह थी, वे केवल कृष्ण को प्रसन्न करना चाहती थीं।” |