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श्लोक |
तास्तथावनता दृष्ट्वा भगवान् देवकीसुत: ।
वासांसि ताभ्य: प्रायच्छत्करुणस्तेन तोषित: ॥ २१ ॥ |
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शब्दार्थ |
ता:—तब; तथा—इस तरह; अवनता:—सिर झुकाते; दृष्ट्वा—देखकर; भगवान्—भगवान्; देवकी-सुत:—देवकीपुत्र, कृष्ण ने; वासांसि—वस्त्र; ताभ्य:—उनको; प्रायच्छत्—लौटा दिया; करुण:—दयालु; तेन—उस कार्य से; तोषित:—सन्तुष्ट ।. |
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अनुवाद |
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उन्हें इस प्रकार नमस्कार करते देखकर देवकीपुत्र भगवान् ने उनपर करुणा करके तथा उनके कार्य से संतुष्ट होकर उनके वस्त्र लौटा दिये। |
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