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श्लोक |
अथ गोपै: परिवृतो भगवान् देवकीसुत: ।
वृन्दावनाद्गतो दूरं चारयन् गा: सहाग्रज: ॥ २९ ॥ |
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शब्दार्थ |
अथ—कुछ समय बाद; गोपै:—ग्वालबालों से; परिवृत:—घिरे हुए; भगवान्—भगवान्; देवकी-सुत:—देवकीपुत्र; वृन्दावनात्—वृन्दावन से; गत:—गये; दूरम्—दूर; चारयन्—चराते हुए; गा:—गौवें; सह-अग्रज:—अपने भाई बलराम के साथ ।. |
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अनुवाद |
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कुछ काल बाद देवकीपुत्र कृष्ण अपने ग्वालबाल मित्रों से घिरकर तथा अपने बड़े भाई बलराम के संग गौवें चराते हुए वृन्दावन से काफी दूर निकल गये। |
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तात्पर्य |
गोपियों के वस्त्रहरण का वर्णन कर चुकने के बाद शुकदेव गोस्वामी कुछ कर्मकाण्डी ब्राह्मणों |
की पत्नियों को भगवान् कृष्ण द्वारा वर दिये जाने की भूमिका आरम्भ कर रहे हैं। |
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