हे स्तोककृष्ण हे अंशो श्रीदामन् सुबलार्जुन ।
विशाल वृषभौजस्विन् देवप्रस्थ वरूथप ॥ ३१ ॥
पश्यतैतान् महाभागान् परार्थैकान्तजीवितान् ।
वातवर्षातपहिमान् सहन्तो वारयन्ति न: ॥ ३२ ॥
शब्दार्थ
हे स्तोक-कृष्ण—हे स्तोक कृष्ण; हे अंशो—हे अंशु; श्रीदामन् सुबल अर्जुन—हे श्रीदामा, सुबल तथा अर्जुन; विशाल वृषभ ओजस्विन्—हे विशाल, वृषभ तथा ओजस्वी; देवप्रस्थ वरूथप—हे देवप्रस्थ तथा वरूथप; पश्यत—जरा देखो तो; एतान्— इन; महा-भागान्—परम भाग्यशाली; पर-अर्थ—अन्यों के लाभ हेतु; एकान्त—एकान्त भाव से; जीवितान्—जिनका जीवन; वात—वायु; वर्ष—वर्षा; आतप—सूर्य की तपन; हिमान्—तथा बर्फ (पाला); सहन्त:—सहते हुए; वारयन्ति—दूर रखते हैं; न:—हमारे लिए ।.
अनुवाद
भगवान् कृष्ण ने कहा “हे स्तोककृष्ण तथा अंशु, हे श्रीदामा, सुबल तथा अर्जुन, हे वृषभ, ओजस्वी, देवप्रस्थ तथा वरूथप, जरा इन भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो जिनके जीवन ही अन्यों के लाभ हेतु समर्पित हैं। वे हवा, वर्षा, धूप तथा पाले को सहते हुए भी इन तत्त्वों से हमारी रक्षा करते हैं।
तात्पर्य
भगवान् कृष्ण पाषाणहृदय कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की पत्नियों पर अपनी दया का दान करने की तैयारी कर रहे थे और इन श्लोकों में वे इंगित कर रहे हैं कि अन्यों के कल्याण के लिए समर्पित वृक्ष भी उन ब्राह्मणों से श्रेष्ठ हैं, जो परोपकारी नहीं हैं। निस्सन्देह, कृष्णभावनामृत आन्दोलन के सदस्यों को इस बात का गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिए।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.