श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  10.22.34 
पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभि: ।
गन्धनिर्यासभस्मास्थितोक्मै: कामान्वितन्वते ॥ ३४ ॥
 
शब्दार्थ
पत्र—पत्तियाँ; पुष्प—फूल; फल—फल; छाया—छाया; मूल—जड़; वल्कल—छाल; दारुभि:—तथा लकड़ी द्वारा; गन्ध— अपनी सुगन्ध से; निर्यास—रस से; भस्म—राख से; अस्थि—लुगदी से; तोक्मै:—तथा नये नये कल्लों से; कामान्—इच्छित वस्तुएँ; वितन्वते—प्रदान करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 ये वृक्ष अपनी पत्तियों, फूलों तथा फलों से, अपनी छाया, जड़ों, छाल तथा लकड़ी से तथा अपनी सुगंध, रस, राख, लुगदी और नये नये कल्लों से मनुष्यों की इच्छापूर्ति करते हैं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥