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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  10.22.36 
इति प्रवालस्तबकफलपुष्पदलोत्करै: ।
तरूणां नम्रशाखानां मध्यतो यमुनां गत: ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस प्रकार कहते हुए; प्रवाल—नई शाखाओं का; स्तबक—गुच्छे से; फल—फल; पुष्प—फूल; दल—तथा पत्तियों की; उत्करै:—अधिकता से; तरूणाम्—वृक्षों की; नम्र—झुकी हुई; शाखानाम्—डालियों के; मध्यत:—बीच में से; यमुनाम्—यमुना नदी तक; गत:—आये ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह वृक्षों के बीच विचरण करते हुए, जिनकी शाखाएँ कोपलों, फलों, फूलों तथा पत्तियों की बहुलता से झुकी हुई थीं, भगवान् कृष्ण यमुना नदी के तट पर आ गये।
 
 
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