हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.22.8 
भगवांस्तदभिप्रेत्य कृष्णो योगेश्वरेश्वर: ।
वयस्यैरावृतस्तत्र गतस्तत्कर्मसिद्धये ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
भगवान्—भगवान्; तत्—वह; अभिप्रेत्य—देखकर; कृष्ण:—श्रीकृष्ण; योग-ईश्वर-ईश्वर:—योगेश्वरों के भी ईश्वर; वयस्यै:— तरुण संगियों द्वारा; आवृत:—घिरे; तत्र—वहाँ; गत:—गये; तत्—उन कन्याओं के; कर्म—अनुष्ठान; सिद्धये—फल के लिए विश्वास दिलाने ।.
 
अनुवाद
 
 योगेश्वरों के भी ईश्वर भगवान् कृष्ण इस बात से अवगत थे कि गोपियाँ क्या कर रही हैं अतएव वे अपने समवयस्क संगियों के साथ गोपियों को उनकी साधना का फल देने गये।
 
तात्पर्य
 योगेश्वरों के भी ईश्वर होने के कारण भगवान् कृष्ण आसानी से गोपियों की इच्छाएँ समझ सकते थे और उनकी पूर्ति भी कर सकते थे। सम्मानित कुटुम्बों की तरुणियों की तरह एक तरुण बालक के समक्ष गोपियों का नग्न अवस्था में प्रकट होना अपने प्राण त्यागने की अपेक्षा अधिक लज्जाशील था। फिर भी कृष्ण ने उन्हें जल से बाहर आने और नमस्कार करने के लिए बाध्य कर दिया। यद्यपि गोपियों के शारीरिक अंग पूर्णतया विकसित थे और कृष्ण उनसे एकान्त स्थान में मिले थे तथा उन्हें पूरी तरह से अपने वश में कर लिया था किन्तु उनके मन में भौतिक इच्छा का लेश भी नहीं था क्योंकि भगवान् पूर्णतया दिव्य हैं। भगवान् कृष्ण दिव्य आनन्द के सागर हैं और वे आध्यात्मिक स्तर पर सामान्य काम-भावना से पूर्णतया मुक्त होकर अपने आनन्द को बाँटना चाह रहे थे। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कहते हैं कि यहाँ कृष्ण के जिन संगियों का उल्लेख हुआ है वे केवल दो-तीन वर्ष के नन्हे बच्चे थे। वे एकदम नंगे थे और उन्हें स्त्री तथा पुरुष में अन्तर का पता नहीं था। कृष्ण जब गौवें चराने जाते तो वे भी उनके पीछे-पीछे हो लेते क्योंकि वे कृष्ण के बिना नहीं रह सकते थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥