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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 25: कृष्ण द्वारा गोवर्धन-धारण  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.25.7 
अहं चैरावतं नागमारुह्यानुव्रजे व्रजम् ।
मरुद्गणैर्महावेगैर्नन्दगोष्ठजिघांसया ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
अहम्—मैं; —भी; ऐरावतम्—ऐरावत नामक; नागम्—हाथी पर; आरुह्य—चढक़र; अनुव्रजे—पीछे पीछे आऊँगा; व्रजम्— व्रज में; मरुत्-गणै:—वायुदेवों को साथ लेकर; महा-वेगै:—अत्यन्त वेग से चलने वाले; नन्द-गोष्ठ—नन्द महाराज के गोप समुदाय को; जिघांसया—विनष्ट करने के विचार से ।.
 
अनुवाद
 
 मैं अपने हाथी ऐरावत पर चढक़र तथा अपने साथ वेगवान एवं शक्तिशाली वायुदेवों को लेकर नन्द महाराज के ग्वालों के ग्राम को विध्वंस करने के लिए तुम लोगों के पीछे रहूँगा।
 
तात्पर्य
 इन्द्र के रोष से भयभीत सांवर्तक मेघों ने उसके आदेश का पालन किया जैसाकि अगले श्लोक में वर्णित है।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥