श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 26: अद्भुत कृष्ण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.26.10 
हत्वा रासभदैतेयं तद्ब‍न्धूंश्च बलान्वित: ।
चक्रे तालवनं क्षेमं परिपक्‍वफलान्वितम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
हत्वा—मारकर; रासभ—गधा के रूप में प्रकट हुए; दैतेयम्—दिति के वंशज को; तत्-बन्धून्—उस असुर के संगियों को; च—भी; बल-अन्वित:—बलराम के साथ; चक्रे—बनाया; ताल-वनम्—तालवन को; क्षेमम्—कल्याणप्रद, मंगलमय; परिपक्व—पके; फल—फलों से; अन्वितम्—पूर्ण ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् बलराम समेत कृष्ण ने राक्षस धेनुकासुर तथा उसके सभी साथियों का वध किया और इस तरह तालवन जंगल को, जो पके हुए ताड़ फलों से भरापुरा था, सुरक्षित बनाया।
 
तात्पर्य
 बहुत समय पूर्व देवी दिति के गर्भ से हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष नामक शक्तिशाली असुर उत्पन्न हुए थे। इसीलिए असुरों को दैतेय या दैत्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है दिति की संतानें। धेनुकासुर अर्थात् गर्दभासुर ने अपने मित्रों के साथ उसने तालवन में आतंक मचा रखा था किन्तु कृष्ण तथा बलराम ने उन सबों को मार डाला जिस तरह कि आधुनिक सरकारें निर्दोष जनता को तंग करने वाले आतंकवादियों का वध कर देती हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥