श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 26: अद्भुत कृष्ण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.26.14 
क्‍व सप्तहायनो बाल: क्‍व महाद्रिविधारणम् ।
ततो नो जायते शङ्का व्रजनाथ तवात्मजे ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
क्व—कहाँ तो; सप्त-हायन:—सप्तवर्षीय; बाल:—यह बालक; क्व—कहाँ; महा-अद्रि—विशाल पर्वत का; विधारणम्— उठाया जाना; तत:—इस प्रकार; न:—हमारे लिए; जायते—उत्पन्न करता है; शङ्का—सन्देह; व्रज-नाथ—हे व्रज के स्वामी; तव—तुम्हारे; आत्मजे—पुत्र के विषय में ।.
 
अनुवाद
 
 कहाँ तो यह सात वर्ष का बालक और कहाँ उसके द्वारा विशाल गोवर्धन पर्वत का उठाया जाना, अतएव, हे व्रजराज, हमारे मन में आपके पुत्र के विषय में शंका उत्पन्न हो रही है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥