वर्णा: त्रय:—तीन रंग; किल—निस्सन्देह; अस्य—तुम्हारे पुत्र कृष्ण के; आसन्—थे; गृह्णत:—ग्रहण किये गये; अनु-युगम् तनू:—विभिन्न युगों के अनुसार दिव्य शरीर; शुक्ल:—कभी श्वेत; रक्त:—कभी लाल; तथा—और; पीत:—कभी पीला; इदानीम् कृष्णताम् गत:—सम्प्रति उसने श्याम वर्ण धारण किया है ।.
अनुवाद
[गर्ग मुनि ने कहा था]: आपका पुत्र कृष्ण हर युग में अवतार के रूप में प्रकट होता है। भूतकाल में उसने तीन रंग—श्वेत, लाल तथा पीला धारण किये थे और अब वह श्यामवर्ण में प्रकट हुआ है।
तात्पर्य
यह तथा इसके आगे के छ: श्लोक (१७ से २२ तक) इसी स्कन्ध के आठवें अध्याय से लिये गये हैं जिनमें गर्ग मुनि नन्द महाराज को नन्द-पुत्र कृष्ण के विषय में समझाते हैं। जो अनुवाद यहाँ पर दिये गये हैं, वे श्रील ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद द्वारा दिये गये अर्थ पर आधारित हैं। अध्याय आठ में जहाँ ये श्लोक मूल रूप में दिए गए हैं श्रील प्रभुपाद द्वारा लिखित विस्तृत तात्पर्य मिलेंगे।
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