श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 26: अद्भुत कृष्ण  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  10.26.21 
य एतस्मिन् महाभागे प्रीतिं कुर्वन्ति मानवा:
। नारयोऽभिभवन्त्येतान् विष्णुपक्षानिवासुरा: ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
ये—जो व्यक्ति; एतस्मिन्—इस बालक को; महा-भागे—परम भाग्यशाली; प्रीतिम्—स्नेह; कुर्वन्ति—करते हैं; मानवा:—ऐसे मनुष्य; न—नहीं; अरय:—शत्रुगण; अभिभवन्ति—पराजित करते हैं; एतान्—कृष्ण से अनुराग करने वाले; विष्णु-पक्षान्— जिनके पक्ष में सदैव विष्णु रहते हैं उन देवताओं को; इव—सदृश; असुरा:—असुरगण ।.
 
अनुवाद
 
 असुरगण देवताओं को हानि नहीं पहुँचा सकते क्योंकि भगवान् विष्णु सदैव उनके पक्ष में रहते हैं। इसी प्रकार सर्वमंगलमय कृष्ण से अनुरक्त कोई भी व्यक्ति या समूह शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता।
 
तात्पर्य
 इस सम्बन्ध में श्रील प्रभुपाद ने विशेष रूप से संकेत किया है कि जिस प्रकार भगवान् कृष्ण के संगी कंस द्वारा पराजित नहीं किये जा सके उसी तरह उनके आज के भक्तगण अपने आसुरी प्रतिद्वन्द्वियों द्वारा पराजित नहीं किये जा सकेंगे। न ही भगवान् के भक्तगण आन्तरिक शत्रुओं से यथा वासनामय भौतिकतावादी इन्द्रियों द्वारा पराजित हो सकेंगे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥