श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 26: अद्भुत कृष्ण  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.26.5 
हिन्वतोऽध: शयानस्य मास्यस्य चरणावुदक् ।
अनोऽपतद् विपर्यस्तं रुदत: प्रपदाहतम् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
हिन्वत:—हिलाते हुए; अध:—नीचे; शयानस्य—लेटे हुए; मास्यस्य—कुछ मास वाले बालक को; चरणौ—दो पाँव; उदक्— ऊपर की ओर; अन:—छकड़ा; अपतत्—गिर पड़ा; विपर्यस्तम्—उलटा हुआ; रुदत:—रोते हुए; प्रपद—अपने पाँव के अग्रभाग से; आहतम्—प्रताडि़त ।.
 
अनुवाद
 
 एक बार जब कृष्ण तीन मास के छोटे शिशु थे, तो रो रहे थे और एक बड़े से छकड़े के नीचे लेटे हुए अपने पाँवों को ऊपर चला रहे थे। तभी यह छकड़ा गिरा और उलट गया क्योंकि उन्होंने अपने पाँव के अँगूठे से उस पर प्रहार किया था।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥