श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 26: अद्भुत कृष्ण  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.26.7 
क्‍वचिद्धैयङ्गवस्तैन्ये मात्रा बद्ध उदूखले ।
गच्छन्नर्जुनयोर्मध्ये बाहुभ्यां तावपातयत् ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
क्वचित्—एक बार; हैयङ्गव—मक्खन; स्तैन्ये—चुराते हुए; मात्रा—अपनी माता द्वारा; बद्ध:—बाँधे गये; उदूखले—ऊखल में; गच्छन्—जाते हुए; अर्जुनयो:—दो अर्जुन वृक्षों के; मध्ये—बीच में; बाहुभ्याम्—अपने हाथों से; तौ अपातयत्—दोनों को गिरा दिया, उखाड़ डाला ।.
 
अनुवाद
 
 एक बार उनकी माता ने उन्हें रस्सियों से एक ऊखल से बाँध दिया क्योंकि माता ने उन्हें मक्खन चुराते पकड़ लिया था। तब वे अपने हाथों के बल रेंगते हुए उस ऊखल को दो अर्जुन वृक्षों के बीच खींच ले गये और उन वृक्षों को उखाड़ डाला।
 
तात्पर्य
 ये दोनों अर्जुन वृक्ष पुराने तथा मोटे थे और कृष्ण के आँगन के ऊपर उठे हुए थे। फिर भी इस नटखट बालक ने उन्हें आसानी से धराशायी कर दिया।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥