श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.27.13 
त्वयेशानुगृहीतोऽस्मि ध्वस्तस्तम्भो वृथोद्यम: ।
ईश्वरं गुरुमात्मानं त्वामहं शरणं गत: ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
त्वया—आपके द्वारा; ईश—हे प्रभु; अनुगृहीत:—दया दिखाया हुआ; अस्मि—हूँ; ध्वस्त—छिन्न-भिन्न; स्तम्भ:—मेरा मिथ्या अभिमान; वृथा—व्यर्थ; उद्यम:—मेरा प्रयास; ईश्वरम्—परमेश्वर की; गुरुम्—गुरु की; आत्मानम्—आत्मा की; त्वाम्— आपकी; अहम्—मैं; शरणम्—शरण में; गत:—आया हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 हे प्रभु, मेरे मिथ्या अहंकार को चकनाचूर करके तथा मेरे प्रयास (वृन्दावन को दण्डित करने का) को पराजित करके आपने मुझपर दया दिखाई है। अब मैं, परमेश्वर, गुरु तथा परमात्मा रूप आपकी शरण में आया हूँ।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥