श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 28: कृष्ण द्वारा वरुणलोक से नन्द महाराज की रक्षा  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  10.28.16 
ते तु ब्रह्मह्रदं नीता मग्ना: कृष्णेन चोद्‌धृता: ।
दद‍ृशुर्ब्रह्मणो लोकं यत्राक्रूरोऽध्यगात् पुरा ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
ते—वे; तु—तथा; ब्रह्म-ह्रदम्—ब्रह्मह्रद नामक सरोवर में; नीता:—लाये गये; मग्ना:—डुबाये गये; कृष्णेन—कृष्ण द्वारा; च—तथा; उद्धृता:—ऊपर निकाले गये; ददृशु:—देखा; ब्रह्मण:—परब्रह्म का; लोकम्—दिव्य लोक; यत्र—जहाँ; अक्रूर:— अक्रूर ने; अध्यगात्—देखा था; पुरा—इसके पूर्व ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् कृष्ण सारे ग्वालों को ब्रह्मह्रद ले आये, उनसे जल के भीतर डुबकी लगवाई और फिर ऊपर निकाल लिया। जिस महत्त्वपूर्ण स्थान से अक्रूर ने वैकुण्ठ को देखा था, वहीं इन ग्वालों ने भी परम सत्य के लोक को देखा।
 
तात्पर्य
 श्लोक १५ में उल्लिखित ब्रह्मज्योति नामक दिव्य ज्योति के असीम प्रसार की उपमा ब्रह्मह्रद नामक सरोवर से दी गई है। भगवान् कृष्ण ने ग्वालों को इस सरोवर में डुबकी लगवाई अर्थात् उन्हें निर्विशेष ब्रह्म से अवगत कराया। लेकिन उसके बाद उन्हें उच्चतर ज्ञान तक पहुँचाया जैसाकि उद्धृता: शब्द से सूचित होता है। यही भगवान् का निजी लोक है। जैसाकि यहाँ स्पष्ट उल्लेख है—

ददृशु: ब्रह्मणो लोकम्—उन्होंने अक्रूर की ही भाँति परब्रह्म के दिव्य धाम का दर्शन किया। चेतना के विकास का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है। सामान्य चेतना के अन्तर्गत हम नाना प्रकार की भौतिक वस्तुओं को देखते और उनकी ओर आकृष्ट होते हैं। आध्यात्मिक चेतना की प्रथम अवस्था तक ऊपर उठकर हम भौतिक विविधता को पार करके अभिन्नित एक पर ध्यान को एकाग्र करते हैं, जो पीछे रहता है और अनेक को अस्तित्व में लाता है। अन्त में कृष्णभावनामृत तक उठकर हम देखते हैं कि परम आध्यात्मिक एक में अपनी शाश्वत अनेकता रहती है। चूँकि यह जगत नित्य जगत का प्रतिबिम्ब मात्र है अतएव हमें इस एक में आध्यात्मिक विविधता की आशा करनी चाहिए और यह निस्सन्देह हमें पावन ग्रन्थ श्रीमद्भागवत में देखने को मिलती है। निपुण पाठक यह ध्यान दें कि अक्रूर सम्बन्धी लीला ग्वालों की इस घटना के बाद भागवत में आई है। शुकदेव गोस्वामी इसका कारण यह बतलाते हैं कि अक्रूर ने पुरा अर्थात् “इसके पूर्व” ही वैकुण्ठ का दर्शन किया था जिसका अर्थ यह हुआ कि शुकदेव गोस्वामी तथा महाराज परीक्षित के मध्य हुई वार्ता के कई वर्ष पूर्व ये घटनाएँ घट चुकी थीं।

 
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