श्रीवरुण उवाच
अद्य मे निभृतो देहोऽद्यैवार्थोऽधिगत: प्रभो ।
त्वत्पादभाजो भगवन्नवापु: पारमध्वन: ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
श्री-वरुण: उवाच—श्रीवरुण ने कहा; अद्य—आज; मे—मेरे द्वारा; निभृत:—सफलतापूर्वक पूरा किया गया; देह:—मेरा भौतिक शरीर; अद्य—आज; एव—निस्सन्देह; अर्थ:—जीवन का लक्ष्य; अधिगत:—अनुभव किया जाता है; प्रभो—हे प्रभु; त्वत्—आपके; पाद—चरणकमल; भाज:—सेवा करने वाले, पात्र; भगवन्—हे परम पुरुष; अवापु:—प्राप्त हो गया; पारम्— चरमावस्था; अध्वन:—पथ की (सांसारिक) ।.
अनुवाद
श्रीवरुण ने कहा : आज मेरे शरीर ने अपना कार्य पूरा कर लिया। हे प्रभु, निस्सन्देह अब मुझे अपना जीवन-लक्ष्य प्राप्त हो चुका। हे भगवन्, जो लोग आपके चरणकमलों को स्वीकार करते हैं, वे भौतिक संसार के मार्ग को पार कर सकते हैं।
तात्पर्य
भगवान् के भव्य शरीर को देखकर वरुण प्रसन्नता के मारे चीख उठता है कि भौतिक शरीर धारण करने का सारा कष्ट आज सुफल हो गया। निस्सन्देह वरुण को अपने जीवन का असली लक्ष्य, अर्थ, प्राप्त हो चुका था। चूँकि भगवान् कृष्ण का रूप दिव्य है अतएव जो उनके चरणकमलों को स्वीकार करते हैं, वे संसार की सीमा के परे चले जाते हैं अतएव जिन्हें आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है वे ही भगवान् के चरणकमलों को भौतिक मानेंगे।
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