श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 28: कृष्ण द्वारा वरुणलोक से नन्द महाराज की रक्षा  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.28.7 
अजानता मामकेन मूढेनाकार्यवेदिना ।
आनीतोऽयं तव पिता तद्भ‍वान् क्षन्तुमर्हति ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
अजानता—अज्ञानी; मामकेन—मेरे सेवक द्वारा; मूढेन—मूर्ख; अकार्य-वेदिना—अपने कर्तव्य को न जानने से; आनीत:—लाये गये; अयम्—यह व्यक्ति; तव—तुम्हारे; पिता—पिता; तत्—वह; भवान्—आप; क्षन्तुम् अर्हति—क्षमा कर दें ।.
 
अनुवाद
 
 यहाँ पर बैठे हुए आपके पिता मेरे एक मूर्ख अज्ञानी नौकर द्वारा मेरे पास लाये गये हैं, जो अपने कर्तव्य को नहीं समझता था। कृपा करके हमें क्षमा कर दें।
 
तात्पर्य
 अयम् अर्थात् “यह जो यहाँ है” स्पष्टत: सूचित करता है कि जब वरुण बोल रहा था, तो कृष्ण के पिता नन्द महाराज वहाँ उपस्थित थे। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती लिखते हैं कि वरुण ने वास्तव में श्रीनन्द को रत्नजटित सिंहासन पर आसीन कर रखा था और स्वयं उनकी सादर पूजा की थी।

एक तरह से नन्द महाराज का सूर्योदय के पूर्व जल में प्रवेश करना उचित था। श्रील जीव गोस्वामी ने इस अध्याय के प्रथम श्लोक की टीका में इसकी व्याख्या इस प्रकार की है : विशेषतया छोटी होने के कारण, एकादशी केवल १८ घंटे की थी अत: सूर्योदय के पूर्व ही द्वादशी के छ: घंटे बीत चुके थे जिनमें उपवास तोडऩा था। चूँकि सूर्योदय होने पर व्रत-भंग का सही समय बीत चुका होता इसलिए नन्द महाराज ने अन्यथा अशुभ समय में जल में प्रवेश करने का निश्चय किया।

वरुण का सेवक वैदिक अनुष्ठानों के पालन करने वालों के निमित्त इन विस्तृत बातों से अवश्य ही ज्ञात रहा होगा। इसके अतिरिक्त नन्द महाराज भगवान् के पिता जैसा आचरण कर रहे थे अतएव वे परम पवित्र व्यक्ति थे जिन्हें वरुण के मूर्ख सेवक जैसे संसारी नगण्य अधिकारी छू भी नहीं सकते थे।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥