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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 3: कृष्ण जन्म  »  श्लोक 48-49
 
 
श्लोक  10.3.48-49 
तया हृतप्रत्ययसर्ववृत्तिषु
द्वा:स्थेषु पौरेष्वपि शायितेष्वथ ।
द्वारश्च सर्वा: पिहिता दुरत्यया
बृहत्कपाटायसकीलश‍ृङ्खलै: ॥ ४८ ॥
ता: कृष्णवाहे वसुदेव आगते
स्वयं व्यवर्यन्त यथा तमो रवे: ।
ववर्ष पर्जन्य उपांशुगर्जित:
शेषोऽन्वगाद् वारि निवारयन्‌ फणै: ॥ ४९ ॥
 
शब्दार्थ
तया—योगमाया के प्रभाव से; हृत-प्रत्यय—सारी अनुभूति से रहित; सर्व-वृत्तिषु—अपनी समस्त इन्द्रियों सहित; द्वा:-स्थेषु— सारे द्वारपाल; पौरेषु अपि—तथा घर के सारे लोग भी; शायितेषु—गहरी नींद में मग्न; अथ—जब वसुदेव ने अपने पुत्र को बन्दीगृह से बाहर ले जाने का प्रयास किया; द्वार: च—तथा दरवाजे भी; सर्वा:—सारे; पिहिता:—निर्मित; दुरत्यया—अत्यन्त कठोर तथा दृढ़; बृहत्-कपाट—तथा बड़े दरवाजे पर; आयस-कील-शृङ्खलै:—लोहे के काँटों से बने तथा लोहे की जंजीरों से बन्द किए गए; ता:—वे सब; कृष्ण-वाहे—कृष्ण को लिए हुए; वसुदेवे—जब वसुदेव; आगते—प्रकट हुए; स्वयम्—स्वयं; व्यवर्यन्त—खुल गए; यथा—जिस तरह; तम:—अँधेरा; रवे:—सूर्य के उदय होने पर; ववर्ष—पानी बरसे हुए; पर्जन्य:— आकाश में बादल; उपांशु-गर्जित:—मन्द गर्जना करते और रिमझिम बरसते; शेष:—अनन्त नाग; अन्वगात्—पीछे-पीछे चला; वारि—वर्षा की झड़ी; निवारयन्—रोकते हुए; फणै:—अपने फनों को फैलाकर ।.
 
अनुवाद
 
 योगमाया के प्रभाव से सारे द्वारपाल गहरी नींद में सो गए, उनकी इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो गईं और घर के अन्य लोग भी गहरी नींद में सो गए। जिस प्रकार सूर्य के उदय होने पर अंधकार स्वत: छिप जाता है उसी तरह वसुदेव के प्रकट होने पर लोहे की कीलों से जड़े तथा भीतर से लोहे की जंजीरों से जकड़े हुए बंद दरवाजे स्वत: खुल गए। चूँकि आकाश में बादल मन्द गर्जना कर रहे थे और झड़ी लगाए हुए थे अत: भगवान् के अंश अनन्त नाग दरवाजे से ही वसुदेव तथा दिव्य शिशु की रक्षा करने के लिए अपने फण फैलाकर वसुदेव के पीछे लग लिए।
 
तात्पर्य
 शेषनाग भगवान् के अंश हैं और उनका काम है सारे साज-सामान के साथ भगवान् की सेवा करना। जब वसुदेव शिशु को लिए जा रहे थे तो शेषनाग भगवान् की सेवा करने तथा वर्षा की हल्की-हल्की बूँदों से उन्हें बचाने के लिए प्रकट हुआ।
 
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