गोप्य: ऊचु:—गोपियों ने कहा; जयति—जय हो; ते—तुम्हारी; अधिकम्—अधिक; जन्मना—जन्म से; व्रज:—व्रजभूमि; श्रयते—वास करती है; इन्दिरा—लक्ष्मीदेवी; शश्वत्—निरन्तर; अत्र—यहाँ; हि—निस्सन्देह; दयित—हे प्रिय; दृश्यताम्— (आप) देखे जा सकें; दिक्षु—सभी दिशाओं में; तावका:—आपके (भक्त); त्वयि—आपके लिए; धृत—धारण किये हुए; असव:—अपने प्राण; त्वाम्—तुमको; विचिन्वते—खोज रही हैं ।.
अनुवाद
गोपियों ने कहा : हे प्रियतम, व्रजभूमि में तुम्हारा जन्म होने से ही यह भूमि अत्यधिक महिमावान हो उठी है और इसीलिए इन्दिरा (लक्ष्मी) यहाँ सदैव निवास करती हैं। केवल तुम्हारे लिए ही तुम्हारी भक्त दासियाँ हम अपना जीवन पाल रही हैं। हम तुम्हें सर्वत्र ढूँढ़ती रही हैं अत: कृपा करके हमें अपना दर्शन दीजिये।
तात्पर्य
जो लोग संस्कृत श्लोकों की उच्चारण-कला से परिचित हैं, वे इस बात की सराहना करेंगे कि इस अध्याय का संस्कृत काव्य बेजोड़ है। विशेषतया श्लोकों के छन्द असामान्य रूप से सुन्दर हैं और अधिकांशत: प्रत्येक पंक्ति का प्रथम तथा सप्तम अक्षर एक ही व्यञ्जन से प्रारम्भ होता है। उसी तरह चारों पंक्तियों के द्वितीय शब्द भी हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.