श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.31.8 
मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यतीर्
अधरसीधुनाप्याययस्व न: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
मधुरया—मधुर; गिरा—अपनी वाणी से; वल्गु—मोहक; वाक्यया—अपने शब्दों से; बुध—बुद्धिमान को; मनो-ज्ञया— आकर्षक; पुष्कर—कमल; ईक्षण—आँखों वाले; विधि-करी:—दासियाँ; इमा:—ये; वीर—हे वीर; मुह्यती:—मोहित हो रही; अधर—तुम्हारे होंठों के; सीधुना—अमृत से; आप्याययस्व—जीवन-दान दीजिये; न:—हमको ।.
 
अनुवाद
 
 हे कमलनेत्र, आपकी मधुर वाणी तथा मोहक शब्द, जो कि बुद्धिमान के मन को आकृष्ट करने वाले हैं, हम सबों को अधिकाधिक मोह रहे हैं। हमारे प्रिय वीर, आप अपने होंठों के अमृत से अपनी दासियों को पुनरुज्जीवित कर दीजिये।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥