श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; इति—इस प्रकार, जैसाकि ऊपर कहा गया; गोप्य:—गोपियाँ; प्रगायन्त्य:— गाती हुईं; प्रलपन्त्य:—बातें करतीं; च—तथा; चित्रधा—अनेक मनमोहक विधियों से; रुरुदु:—चिल्लाईं; सु-स्वरम्—तेजी से; राजन्—हे राजा; कृष्ण-दर्शन—कृष्ण का दर्शन करने की; लालसा:—लालसाएँ ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, इस तरह गाकर तथा अपने हृदय की बातों को विविध मोहक विधियों से प्रकट करके गोपियाँ जोर जोर से रोने लगीं। वे कृष्ण का दर्शन करने के लिए अत्यन्त लालायित थीं।
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