श्रीकृष्ण ने गोपियों के भीतर कामवासना जागृत कर दी थी और वे अपनी क्रीड़ापूर्ण हँसी से उनको निहारतीं, अपनी भौंहों से प्रेममय इशारे करतीं तथा अपनी अपनी गोदों में उनके हाथ तथा पाँव रखकर उन्हें मलती हुईं उनका सम्मान करने लगीं। किन्तु उनकी पूजा करते हुए भी वे कुछ कुछ रुष्ट थीं अतएव वे उनसे इस प्रकार बोलीं।
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