श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 32: पुन: मिलाप  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.32.4 
काचित् कराम्बुजं शौरेर्जगृहेऽञ्जलिना मुदा ।
काचिद् दधार तद्बाहुमंसे चन्दनभूषितम् ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
काचित्—उनमें से एक; कर-अम्बुजम्—कर-कमल को; शौरे:—भगवान् कृष्ण के; जगृहे—पकड़ लिया; अञ्जलिना—अपनी हथेली में; मुदा—हर्ष के मारे; काचित्—दूसरी ने; दधार—रख लिया; तत्-बाहुम्—उनकी भुजा को; अंसे—अपने कंधे पर; चन्दन—चन्दन लेप से; भूषितम्—सजाई गई ।.
 
अनुवाद
 
 एक गोपी ने हर्षित होकर कृष्ण के हाथ को अपनी हथेलियों के बीच में ले लिया और दूसरी ने चन्दनलेप से विभूषित उनकी भुजा अपने कंधे पर रख ली।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥