हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 34: नन्द महाराज की रक्षा तथा शंखचूड़ का वध  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.34.11 
को भवान् परया लक्ष्म्या रोचतेऽद्भ‍ुतदर्शन: ।
कथं जुगुप्सितामेतां गतिं वा प्रापितोऽवश: ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
क:—कौन; भवान्—आप; परया—महान; लक्ष्म्या—सौन्दर्य से युक्त; रोचते—चमक रहे हो; अद्भुत—अनोखा; दर्शन:— देखने में; कथम्—क्यों; युगुप्सिताम्—भयानक; एताम्—यह; गतिम्—लक्ष्य; वा—तथा; प्रापित:—धारण करना पड़ा; अवश:—अपने वश से बाहर ।.
 
अनुवाद
 
 [भगवान् कृष्ण ने कहा] महाशय, आप तो अत्यधिक सौन्दर्य से चमत्कृत होने से इतने अद्भुत लग रहे हैं। आप कौन हैं? और आपको किसने सर्प का यह भयानक शरीर धारण करने के लिए बाध्य किया?
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥