भगवान् के दिव्य चरण का स्पर्श पाते ही सर्प के सारे पाप विनष्ट हो गये और उसने अपना सर्प-शरीर त्याग दिया। वह पूज्य विद्याधर के रूप में प्रकट हुआ।
तात्पर्य
रूपं विद्याधरार्चितम् शब्द बतलाते हैं कि अभी तक जो सर्प था वह अब विद्याधर नामक देवताओं में पूजित सुन्दर रूप में प्रकट हुआ। दूसरे शब्दों में, वह विद्याधरों के नायक के रूप में प्रकट हुआ।
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