सहबल: स्रगवतंसविलास:
सानुषु क्षितिभृतो व्रजदेव्य: ।
हर्षयन् यर्हि वेणुरवेण
जातहर्ष उपरम्भति विश्वम् ॥ १२ ॥
महदतिक्रमणशङ्कितचेता
मन्दमन्दमनुगर्जति मेघ: ।
सुहृदमभ्यवर्षत् सुमनोभि-
श्छायया च विदधत् प्रतपत्रम् ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
सह-बल:—बलराम के साथ; स्रक्—फूल की माला; अवतंस—सिर पर आभूषण की तरह; विलास:—खेलखेल में पहनकर; सानुषु—तलहटी में; क्षिति-भृत:—पर्वत की; व्रज-देव्य:—हे वृन्दावन की देवियो (गोपियो); हर्षयन्—हर्ष उत्पन्न करते हुए; यर्हि—जब; वेणु—उनकी वंशी की; रवेण—प्रतिध्वनि से; जात-हर्ष:—हर्षित होकर; उपरम्भति—आस्वादन कराते हैं; विश्वम्—सारे जगत को; महत्—महापुरुष के; अतिक्रमण—अवमानना; शङ्कित—डरा हुआ; चेता:—मन में; मन्द-मन्दम्— अत्यन्त धीरे धीरे; अनुगर्जति—बदले में गरजता है; मेघ:—बादल; सुहृदम्—अपने मित्र के ऊपर; अभ्यवर्षत्—वर्षा करता है; सुमनोभि:—फूलों से; छायया—अपनी छाया से; च—तथा; विदधत्—प्रदान करते हुए; प्रतपत्रम्—सूर्य से रक्षा के लिए छाता ।.
अनुवाद
हे व्रज-देवियो, जब कृष्ण बलराम के साथ खेलखेल में अपने सिर पर फूलों की माला धारण करके पर्वत की ढालों पर विहार करते हैं, तो वे अपनी वंशी की गूँजती ध्वनि से सबों को आह्लादित कर देते हैं। इस तरह वे सम्पूर्ण विश्व को प्रमुदित करते हैं। उस समय महान् पुरुष के अप्रसन्न होने के भय से भयभीत होकर निकटवर्ती बादल उनके साथ होकर मंद मंद गर्जना करता है। यह बादल अपने प्रिय मित्र कृष्ण पर फूलों की वर्षा करता है और धूप से बचाने के लिए छाते की तरह छाया प्रदान करता है।
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