श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.37.23 
त्वामीश्वरं स्वाश्रयमात्ममायया
विनिर्मिताशेषविशेषकल्पनम् ।
क्रीडार्थमद्यात्तमनुष्यविग्रहं
नतोऽस्मि धुर्यं यदुवृष्णिसात्वताम् ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
त्वाम्—तुमको; ईश्वरम्—परमनियन्ता को; स्व-आश्रयम्—आत्म-निर्भर; आत्म—निजी; मायया—सृजन-शक्ति द्वारा; विनिर्मित—बनाया हुआ; अशेष—असीम; विशेष—विशिष्ट; कल्पनम्—व्यवस्था; क्रीड—खेल के; अर्थम्—हेतु; अद्य—अब; आत्त—लिया हुआ; मनुष्य—मनुष्यों के बीच; विग्रहम्—लड़ाई; नत:—नत; अस्मि—हूँ; धुर्यम्—महानतम, शिरोमणि; यदु-वृष्णि-सात्वताम्—यदु, वृष्टि तथा सात्वत कुलों के ।.
 
अनुवाद
 
 हे आत्म-निर्भर परमनियन्ता, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आपने अपनी शक्ति से इस ब्रह्माण्ड की असीम विशिष्ट व्यवस्था की रचना की है। अब आप यदुओं, वृष्णियों तथा सात्वतों के बीच महानतम वीर के रूप में प्रकट हुए हैं और आपने मानवीय युद्ध में भाग लेने का निर्णय किया है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥