द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च। विष्णुभक्त स्मृतो दैव आसुरस्तद् विपर्यय: ॥ (पद्म पुराण ) भगवान् विष्णु या कृष्ण के भक्त सुर या देवता हैं और भक्तों के विरोधी लोग असुर हैं। भक्तगण सारे व्यवहारों में पटु होते हैं (यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा:)। इसलिए वे कोविद अर्थात् “पटु” कहलाते हैं। किन्तु असुरगण ऊपर से कामुक वृत्तियों में पटुता दिखलाते हुए भी पूरी तरह मूर्ख होते हैं। न तो वे गम्भीर होते हैं, न कोविद। वे जो भी करते हैं वह अपूर्ण होता है। मोघाशा मोघकर्माण:। यह विवरण असुरों के विषय में भगवद्गीता (९.१२) में पाया जाता है, जिसके अनुसार वे जो भी करते हैं उससे उन्हें निराशा ही मिलती है। कंस को मंत्रणा देने वाले ऐसे ही व्यक्ति थे, जो उनके प्रधान मित्र तथा मंत्री थे। |