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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  10.40.22 
नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्यदानवमोहिने ।
म्‍लेच्छप्रायक्षत्रहन्त्रे नमस्ते कल्किरूपिणे ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
नम:—नमस्कार; बुद्धाय—बुद्ध को; शुद्धाय—शुद्ध; दैत्य-दानव—दिति तथा दानु की सन्तानों के; मोहिने—मोहने वाले को; म्लेच्छ—मांस-भक्षक अछूत के; प्राय—समान; क्षत्र—राजाओं; हन्त्रे—मारने वाले को; नम:—नमस्कार; ते—तुम्हें; कल्कि- रूपिणे—कल्कि के रूप में ।.
 
अनुवाद
 
 आपके शुद्ध रूप भगवान् बुद्ध को नमस्कार है, जो दैत्यों तथा दानवों को मोह लेगा। आपके कल्कि रूप को नमस्कार है, जो राजा बनने वाले मांस-भक्षकों का संहार करने वाला है।
 
 
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