श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.40.6 
एके त्वाखिलकर्माणि सन्न्यस्योपशमं गता: ।
ज्ञानिनो ज्ञानयज्ञेन यजन्ति ज्ञानविग्रहम् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
एके—कुछ लोग; त्वा—तुमको; अखिल—समस्त; कर्माणि—कार्य; सन्न्यस्य—त्यागकर; उपशमम्—शान्ति; गता:—प्राप्त करके; ज्ञानिन:—ज्ञानीजन; ज्ञान-यज्ञेन—ज्ञान-अनुशील के यज्ञ द्वारा; यजन्ति—पूजा करते हैं; ज्ञान-विग्रहम्—साक्षात् ज्ञान को ।.
 
अनुवाद
 
 आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में कुछ लोग सारे भौतिक कार्यों का परित्याग कर देते हैं और इस तरह शान्त होकर समस्त ज्ञान के आदि रूप आपकी पूजा करने के लिए ज्ञान-यज्ञ करते हैं।
 
तात्पर्य
 आधुनिक दार्शनिकजन भगवान् की पूजा की परवाह किये बिना ही ज्ञान का अनुसरण करते हैं फलत: स्वाभाविक है कि उन्हें बहुत ही कम लाभ हो पाता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥