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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  10.40.9 
सर्व एव यजन्ति त्वां सर्वदेवमयेश्वरम् ।
येऽप्यन्यदेवताभक्ता यद्यप्यन्यधिय: प्रभो ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
सर्वे—सभी; एव—निस्सन्देह; यजन्ति—पूजा करते हैं; त्वम्—तुम्हारी; सर्व-देव—समस्त देवता; मय—हे वही आप, जो युक्त हो; ईश्वरम्—भगवान्; ये—वे; अपि—भी; अन्य—दूसरे; देवता—देवताओं का; भक्ता:—भक्तों; यदि अपि—यद्यपि; अन्य— अन्यत्र मुड़े; धिय:—ध्यान; प्रभो—हे प्रभो ।.
 
अनुवाद
 
 किन्तु हे प्रभु, ये सारे लोग, यहाँ तक कि जिन्होंने आपसे अपना ध्यान मोड़ रखा है और जो अन्य देवताओं की पूजा कर रहे हैं, वे वास्तव में, हे समस्त देवमय, आपकी ही पूजा कर रहे हैं।
 
तात्पर्य
 यहाँ भाव यह है कि जो देवताओं को पूजते हैं, वे भी अप्रत्यक्ष रूप से भगवान् विष्णु की ही पूजा करते हैं। लेकिन ऐसे पूजकों का ज्ञान अधूरा है।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥