श्रीमद् भागवतम
हिंदी में पढ़े और सुनें
Reset
भागवतम
भगवद गीता
Download
संपर्क
भागवत पुराण
»
स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
»
अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना
»
श्लोक 18
श्लोक
धनुषो भज्यमानस्य शब्द: खं रोदसी दिश: ।
पूरयामास यं श्रुत्वा कंसस्त्रासमुपागमत् ॥ १८ ॥
शब्दार्थ
धनुष:—धनुष के; भज्यमानस्य—टूटने से; शब्द:—ध्वनि; खम्—पृथ्वी; रोदसी—आकाश; दिश:—तथा सारी दिशाएँ; पूरयाम् आस—भर गई; यम्—जिसे; श्रुत्वा—सुनकर; कंस:—राजा कंस ने; त्रासम्—भय; उपागमत्—अनुभव किया ।.
अनुवाद
play_arrowpause
धनुष के टूटने की ध्वनि पृथ्वी तथा आकाश की सारी दिशाओं में भर गई। इसे सुनकर कंस भयभीत हो उठा।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
श्रीमद् भागवतम
श्रीमद् भगवद्गीता
योगदान
Download
संपर्क
Connect
About Us
|
Terms & Conditions
Privacy Policy
|
Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥