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श्लोक  |
तयोस्तदद्भुतं वीर्यं निशाम्य पुरवासिन: ।
तेज: प्रागल्भ्यं रूपं च मेनिरे विबुधोत्तमौ ॥ २२॥ |
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शब्दार्थ |
तयो:—उन दोनों के; तत्—उस; अद्भुतम्—अद्भुत; वीर्यम्—वीरतापूर्ण कार्य को; निशाम्य—देखकर; पुर-वासिन:—नगर निवासी; तेज:—उनके तेज; प्रागल्भ्यम्—प्रगल्भता, साहस; रूपम्—सौन्दर्य को; च—तथा; मेनिरे—उन्होंने सोचा; विबुध— देवता; उत्तमौ—दो श्रेष्ठ ।. |
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अनुवाद |
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कृष्ण तथा बलराम द्वारा किये गये अद्भुत कार्य तथा उनके बल, साहस एवं सौन्दर्य को देखकर नगरवासियों ने सोचा कि वे अवश्य ही दो मुख्य देवता हैं। |
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