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श्लोक  |
कंस: परिवृतोऽमात्यै राजमञ्च उपाविशत् ।
मण्डलेश्वरमध्यस्थो हृदयेन विदूयता ॥ ३५ ॥ |
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शब्दार्थ |
कंस:—कंस; परिवृत:—घिरा हुआ; अमात्यै:—अपने मंत्रियों से; राज-मञ्चे—राजसी मंच पर; उपाविशति—बैठा; मण्डल- ईश्वर—विभिन्न मण्डलों के गौण शासक; मध्य—बीच में; स्थ:—स्थित; हृदयेन—हृदय से; विदूयता—थरथराता, काँपता ।. |
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अनुवाद |
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अपने मंत्रियों से घिरा हुआ कंस अपने राजमंच पर आसीन हुआ। किन्तु अपने विविध मण्डलेश्वरों के बीच में बैठे हुए भी उसका हृदय काँप रहा था। |
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