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श्लोक  |
ततस्तावङ्गरागेण स्ववर्णेतरशोभिना ।
सम्प्राप्तपरभागेन शुशुभातेऽनुरञ्जितौ ॥ ५ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तब; तौ—वे दोनों; अङ्ग—अपने शरीरों के; रागेण—रंगीन प्रसाधनों से; स्व—अपने; वर्ण—रंगों से; इतर—इसके अतिरिक्त; शोभिना—अलंकृत करके; सम्प्राप्त—जिससे दिखने लगा; पर—सर्वोच्च; भगेन—श्रेष्ठता; शुशुभाते—सुन्दर लगने लगे; अनुरञ्जितौ—लेप करके ।. |
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अनुवाद |
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इन सर्वोत्तम अंगरागों का लेप करके, जिनसे उनके शरीर अपने रंगों से विपरीत रंगों से सज गए, दोनों भगवान् अत्यधिक सुन्दर लगने लगे। |
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तात्पर्य |
आचार्यों का सुझाव है कि कृष्ण ने अपने शरीर पर पीला लेप लगाया और बलराम ने नीला लेप। |
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