श्रीशुक उवाच
एवं चर्चितसङ्कल्पो भगवान् मधुसूदन: ।
आससादाथ चाणूरं मुष्टिकं रोहिणीसुत: ॥ १ ॥
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—शुकदेव गोस्वामी ने कहा; एवम्—इस प्रकार; चर्चित—स्थिर करते हुए; सङ्कल्प:—अपना संकल्प; भगवान्—भगवान्; मधुसूदन:—कृष्ण ने; आससाद—मुठभेड़ की; अथ—तत्पश्चात्; चाणूरम्—चाणूर से; मुष्टिकम्—मुष्टिक से; रोहिणी-सुत:—रोहिणी के पुत्र, बलराम ने ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : इस तरह सम्बोधित किये जाने पर कृष्ण ने इस चुनौती को स्वीकार करने का मन बना लिया। उन्होंने चाणूर को और भगवान् बलराम ने मुष्टिक को अपना प्रतिद्वन्द्वी चुना।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥