एवं प्रभाषमाणासु स्त्रीषु योगेश्वरो हरि: ।
शत्रुं हन्तुं मनश्चक्रे भगवान् भरतर्षभ ॥ १७ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; प्रभाषमाणासु—बोलती हुई; स्त्रीषु—स्त्रियों के; योग-ईश्वर:—समस्त योग-शक्ति के स्वामी; हरि:—कृष्ण ने; शत्रुम्—अपने शत्रु को; हन्तुम्—मारने के लिए; मन: चक्रे—अपना मन बनाया; भगवान्—भगवान्; भरत-ऋषभ—हे भरत-श्रेष्ठ ।.
अनुवाद
[शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा] हे भरत-श्रेष्ठ, जब स्त्रियाँ इस तरह बोल रही थीं तो समस्त योग-शक्ति के स्वामी भगवान् कृष्ण ने अपने शत्रु को मार डालने का निश्चय कर लिया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥