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श्लोक |
परिभ्रामणविक्षेपपरिरम्भावपातनै: ।
उत्सर्पणापसर्पणैश्चान्योन्यं प्रत्यरुन्धताम् ॥ ४ ॥ |
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शब्दार्थ |
परिभ्रामण—एक-दूसरे के चारों ओर घूमते हुए; विक्षेप—धक्का देते; परिरम्भ—कुचलते; अवपातनै:—तथा नीचे गिराते हुए; उत्सर्पण—छोडक़र फिर दौडऩा; अपसर्पणै:—पीछे जाकर; च—तथा; अन्योन्यम्—एक-दूसरे को; प्रत्यरुन्धताम्—प्रतिरोध या बचाव करने लगे ।. |
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अनुवाद |
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प्रत्येक कुश्ती लडऩे वाला अपने विपक्षी को खींचकर चक्कर लगवाता, धक्के देकर उसे नीचे गिरा देता (पटक देता) और उसके आगे तथा पीछे दौड़ता। |
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तात्पर्य |
श्रील श्रीधर स्वामी बतलाते हैं कि परिरम्भ शब्द सूचित करता |
है प्रतिपक्षी को बाहुओं के बीच में पकडक़र मसल देना। |
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