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श्लोक |
तेषां स्त्रियो महाराज सुहृन्मरणदु:खिता: ।
तत्राभीयुर्विनिघ्नन्त्य: शीर्षाण्यश्रुविलोचना: ॥ ४३ ॥ |
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शब्दार्थ |
तेषाम्—उनकी (कंस तथा उसके भाइयों की); स्त्रिय:—पत्नियाँ; महाराज—हे राजन् (परीक्षित); सुहृत्—शुभचिन्तकों (पत्नियों) के; मरण—मृत्यु के कारण; दु:खिता:—दुखित; तत्र—उस स्थान पर; अभीयु:—पहुँचे; विनिघ्नन्त्य:—पीटते हुए; शीर्षाणि—अपने सिर; अश्रु—आँसू से युक्त; विलोचना:—उनकी आँखें ।. |
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अनुवाद |
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हे राजन्, कंस तथा उसके भाइयों की पत्नियाँ अपने अपने शुभचिन्तक पतियों की मृत्यु से शोकाकुल होकर अपने सिर पीटती हुई तथा आँखों में आँसू भरे वहाँ पर आईं। |
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