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श्लोक |
मातरं पितरं चैव मोचयित्वाथ बन्धनात् ।
कृष्णरामौ ववन्दाते शिरसा स्पृश्य पादयो: ॥ ५० ॥ |
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शब्दार्थ |
मातरम्—अपनी माता को; पितरम्—पिता को; च—तथा; एव—भी; मोचयित्वा—छुड़ाकर; अथ—तब; बन्धनात्—हथकड़ी, बेड़ी से; कृष्ण-रामौ—कृष्ण तथा बलराम ने; ववन्दाते—नमस्कार किया; शिरसा—सिर से; स्पृश्य—छूकर; पादयो:—उनके पैर ।. |
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अनुवाद |
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तत्पश्चात् कृष्ण तथा बलराम ने अपने माता-पिता को बन्धन से छुड़ाया और अपने सिर से उनके पैरों को छूकर उन्हें नमस्कार किया। |
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