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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  » 
 
 
 
 
संक्षेप विवरण:  इस अध्याय में बतलाया गया है कि नन्द महाराज ने अपने नवजात शिशु का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया। इसके बाद वे कंस को कर देने गए तथा अपने घनिष्ठ मित्र वसुदेव...
 
श्लोक 1-2:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : नन्द महाराज स्वभाव से अत्यन्त उदार थे अत: जब भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र रूप में जन्म लिया तो वे हर्ष के मारे फूले नहीं समाए। अतएव स्नान द्वारा अपने को शुद्ध करके तथा समुचित ढंग से वस्त्र धारण करके उन्होंने वैदिक मंत्रों का पाठ करने वाले ब्राह्मणों को बुला भेजा। जब ये योग्य ब्राह्मण शुभ वैदिक स्तोत्रों का पाठ कर चुके तो नन्द ने अपने नवजात शिशु के जात-कर्म को विधिवत् सम्पन्न किए जाने की व्यवस्था की। उन्होंने देवताओं तथा पूर्वजों की पूजा का भी प्रबन्ध किया।
 
श्लोक 3:  नन्द महाराज ने ब्राह्मणों को वस्त्रों तथा रत्नों से अलंकृत बीस लाख गौवें दान में दीं। उन्होंने रत्नों तथा सुनहरे गोटे वाले वस्त्रों से ढके तिल से बनाये गये सात पहाड़ भी दान में दिए।
 
श्लोक 4:  हे राजन्, समय बीतने के साथ ही, धरती तथा अन्य सम्पत्ति शुद्ध हो जाती हैं; स्नान से शरीर शुद्ध होता है और सफाई करने से मलिन वस्तुएँ शुद्ध होती हैं। संस्कार अनुष्ठानों से जन्म शुद्ध होता है, तपस्या से इन्द्रियाँ शुद्ध होती हैं तथा पूजा से और ब्राह्मणों को दान देने से भौतिक सम्पत्ति शुद्ध होती है। सन्तोष से मन शुद्ध होता है और आत्मज्ञान अर्थात् कृष्णभावनामृत से आत्मा शुद्ध होता है।
 
श्लोक 5:  ब्राह्मणों ने मंगलकारी वैदिक स्तोत्र सुनाए जिनकी ध्वनि से वातावरण शुद्ध हो गया। प्राचीन इतिहासों या पुराणों को सुनाने वाले, राजपरिवारों के इतिहास सुनाने वाले तथा सामान्य वाचकों ने गायन किया जबकि गवैयों ने भेरी, दुन्दुभी आदि अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों की संगत में गाया।
 
श्लोक 6:  नन्द महाराज का निवास व्रजपुर रंग-बिरंगी झंडियों तथा झंडों से पूरी तरह सजाया गया था और विभिन्न स्थानों पर नाना प्रकार के फूलों की मालाओं, वस्त्रों तथा आम की पत्तियों से तोरण बनाए गए थे। आँगन, सडक़ों के पास के दरवाजे तथा घरों के कमरों के भीतर की सारी वस्तुएँ अच्छी तरह से झाड़ बुहार कर पानी से धोई गई थीं।
 
श्लोक 7:  गौवों, बैलों तथा बछड़ों के सारे शरीर में हल्दी तथा तेल के साथ नाना प्रकार के खनिजों का लेप किया गया था। उनके मस्तकों को मोर पंखों से सजाया गया था, उन्हें मालाएँ पहनाई गई थीं और ऊपर से वस्त्र तथा सुनहरे गहनों से आच्छादित किया गया था।
 
श्लोक 8:  हे राजा परीक्षित, ग्वाले अत्यन्त मूल्यवान गहने तथा कंचुक और पगड़ी जैसे वस्त्रों से खूब सजे-धजे थे। इस तरह से सजधज कर तथा अपने हाथों में तरह-तरह की भेंटें लेकर वे नन्द महाराज के घर आए।
 
श्लोक 9:  गोपियाँ यह सुनकर अत्यधिक प्रसन्न थीं कि माता यशोदा ने पुत्र को जन्म दिया है, अत: वे उपयुक्त वस्त्रों, गहनों, काजल आदि से अपने को सजाने लगीं।
 
श्लोक 10:  अपने कमल जैसे असाधारण सुन्दर मुखों को केसर तथा नव-विकसित कुंकुम से अलंकृत करके गोपियाँ अपने हाथों में भेंटें लेकर माता यशोदा के घर के लिए तेजी से चल पड़ीं। प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण उनके नितम्ब बड़े-बड़े थे तथा तेजी से चलने के कारण उनके बड़े-बड़े स्तन हिल रहे थे।
 
श्लोक 11:  गोपियों के कानों में चमचमाते रत्नजटित बालियाँ थी और उनके गले में धातुओं के हाँस लटक रहे थे। उनके हाथ चूडिय़ों से विभूषित थे, उनकी वेशभूषाएँ विविध रंगों की थीं और उनके बालों में लगे फूल रास्तों पर गिर रहे थे मानो वर्षा हो रही हो। इस प्रकार नन्द महाराज के घर जाते समय गोपियाँ, उनके कुंडल, उनके हिलते स्तन तथा मालाएँ अतीव सुन्दर लग रही थीं।
 
श्लोक 12:  ग्वालों की पत्नियों तथा पुत्रियों ने नवजात शिशु, कृष्ण, को आशीर्वाद देते हुए कहा, “आप व्रज के राजा बनें और यहाँ के सारे निवासियों का दीर्घकाल तक पालन करें।” उन्होंने अजन्या भगवान् पर हल्दी, तेल तथा जल का मिश्रण छिडक़ा और प्रार्थनाएँ कीं।
 
श्लोक 13:  चूँकि अब सर्वव्यापी, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी, अनन्त भगवान् कृष्ण महाराज नन्द की पुरी में पदार्पण कर चुके थे, अतएव इस महान् उत्सव के उपलक्ष्य में नाना प्रकार के वाद्ययंत्र बजाये गये।
 
श्लोक 14:  ग्वालों ने प्रसन्न होकर एक दूसरे के शरीरों में दही, खीर, मक्खन तथा जल का घोल छिडक़कर इस महोत्सव का आनन्द लिया। उन्होंने एक दूसरे पर मक्खन फेंका और एक दूसरे के शरीरों में पोता भी।
 
श्लोक 15-16:  उदारचेता महाराज नन्द ने भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ग्वालों को वस्त्र, आभूषण तथा गाएँ दान में दीं। इस तरह उन्होंने अपने पुत्र की दशा को सभी प्रकार से सँवारा। उन्होंने सूतों, मागधों, वन्दीजनों तथा अन्य वृत्ति वाले लोगों को उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार दान दिया और हर एक की इच्छाओं को तुष्ट किया।
 
श्लोक 17:  बलदेव की माता अति-भाग्यशालिनी रोहिणी नन्द महाराज तथा यशोदा द्वारा अभिनन्दित हुईं। उन्होंने भी शानदार वस्त्र पहन रखे थे और गले के हार, माला तथा अन्य गहनों से अपने को सजा रखा था। वे उस उत्सव में अतिथि-स्त्रियों का स्वागत करने के लिए इधर-उधर आ-जा रही थीं।
 
श्लोक 18:  हे महाराज परीक्षित, नन्द महाराज का घर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् तथा उनके दिव्य गुणों का शाश्वत धाम है फलत: उसमें समस्त सम्पदाओं का ऐश्वर्य सदैव निहित है। फिर भी कृष्ण के आविर्भाव के दिन से ही वह घर देवी लक्ष्मी की क्रीड़ास्थली बन गया।
 
श्लोक 19:  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : हे महाराज परीक्षित, हे कुरुवंश के सर्वश्रेष्ठ रक्षक, उसके बाद नन्द महाराज ने स्थानीय ग्वालों को गोकुल की रक्षा के लिए नियुक्त किया और स्वयं राजा कंस को वार्षिक कर देने मथुरा चले गए।
 
श्लोक 20:  जब वसुदेव ने सुना कि उनके अत्यन्त प्रिय मित्र तथा भाई नन्द महाराज मथुरा पधारे हैं और वे कंस को कर भुगतान कर चुके हैं, तो वे नन्द महाराज के डेरे में गए।
 
श्लोक 21:  जब नन्द महाराज ने सुना कि वसुदेव आए हैं, तो वे प्रेम तथा स्नेह से अभिभूत हो उठे और इतने प्रसन्न हुए मानो उन्हें पुन: जीवन पा लिया हो। वसुदेव को अचानक उपस्थित देखकर वे उठ खड़े हुए और अपनी दोनों भुजाओं में लेकर गले लगा लिया।
 
श्लोक 22:  हे महाराज परीक्षित, नन्द महाराज द्वारा, इस प्रकार आदरपूर्वक सत्कार एवं स्वागत किए जाने पर वसुदेव बड़ी ही शान्ति से बैठ गए और अपने दोनों पुत्रों के प्रति अगाध-प्रेम के कारण उनके विषय में पूछा।
 
श्लोक 23:  मेरे भाई नन्द महाराज, इस वृद्धावस्था में भी आपका कोई पुत्र न था और आप निराश हो चुके थे। अत: अब जबकि आपको पुत्र प्राप्त हुआ है, तो यह अत्यधिक सौभाग्य का लक्षण है।
 
श्लोक 24:  यह मेरा सौभाग्य ही है कि मैं आपके दर्शन कर रहा हूँ। इस अवसर को प्राप्त करके मुझे ऐसा लग रहा है मानो मैंने फिर से जन्म लिया हो। इस जगत में उपस्थित रह कर भी मनुष्य के लिए अपने घनिष्ठ मित्रों तथा प्रिय सम्बन्धियों से मिल पाना अत्यन्त कठिन होता है।
 
श्लोक 25:  लकड़ी के फट्टे और छडिय़ाँ एकसाथ रुकने में असमर्थ होने से नदी की लहरों के वेग से बहा लिए जाते हैं। इसी तरह हम अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हुए भी अपने नाना प्रकार के विगत कर्मों तथा काल की लहरों के कारण एकसाथ रहने में असमर्थ होते हैं।
 
श्लोक 26:  हे मित्र नन्द महाराज, आप जिस स्थान में रह रहे हैं क्या वहाँ का जंगल पशुओं-गौवों के लिए अनुकूल है? आशा है कि वहाँ रोग या कोई असुविधा नहीं होगी। वह स्थान जल, घास तथा अन्य पौधों से भरा-पुरा होगा।
 
श्लोक 27:  आप तथा यशोदा देवी के द्वारा पाले जाने के कारण मेरा पुत्र बलदेव आप दोनों को अपना माता-पिता मानता तो है न, वह आपके घर में अपनी असली माता रोहिणी के साथ शान्तिपूर्वक रह रहा है न!
 
श्लोक 28:  जब किसी के मित्र तथा सम्बन्धीगण अपने-अपने पदों पर ठीक तरह से बने रहते हैं, तो वैदिक साहित्य में उल्लिखित उनके धर्म, अर्थ तथा काम लाभप्रद होते हैं। अन्यथा, मित्रों तथा सम्बन्धियों के क्लेशग्रस्त होने पर इन तीनों से कोई सुख नहीं मिल पाता।
 
श्लोक 29:  नन्द महाराज ने कहा : हाय! राजा कंस ने देवकी से उत्पन्न तुम्हारे अनेक बालकों को मार डाला। और तुम्हारी सन्तानों में सबसे छोटी एक कन्या स्वर्गलोक को चली गई।
 
श्लोक 30:  प्रत्येक व्यक्ति निश्चय ही प्रारब्ध द्वारा नियंत्रित होता है क्योंकि उसी से मनुष्य के सकाम कर्मों के फल निर्धारित होते हैं। दूसरे शब्दों में, अदृष्ट प्रारब्ध के कारण ही मनुष्य को पुत्र या पुत्री प्राप्त होती है और जब पुत्र या पुत्री नहीं रहते, तो वह भी अदृष्ट प्रारब्ध के ही कारण होता है। प्रारब्ध ही हर एक का अनन्तिम नियंत्रक है। जो इसे जानता है, वह कभी मोहग्रस्त नहीं होता।
 
श्लोक 31:  वसुदेव ने नन्द महाराज से कहा : मेरे भाई, अब तो आपने कंस को वार्षिक कर चुका दिया है और मुझसे भी भेंट कर ली है, अत: इस स्थान पर अब अधिक दिन मत रुको। गोकुल लौट जाना बेहतर है क्योंकि मैं जानता हूँ कि वहाँ कुछ उपद्रव हो सकते हैं।
 
श्लोक 32:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : जब वसुदेव ने नन्द महाराज को इस प्रकार सलाह दी तो नन्द महाराज तथा उनके संगी ग्वालों ने वसुदेव से अनुमति ली, अपनी-अपनी गाडिय़ों में बैल जोते और सवार होकर गोकुल के लिए प्रस्थान कर गये।
 
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