श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; इति—इस प्रकार; नन्द-आदय:—नन्द महाराज तथा उनके साथी; गोपा:— ग्वाले; प्रोक्ता:—सलाह दिए जाने पर; ते—वे; शौरिणा—वसुदेव द्वारा; ययु:—उस स्थान से रवाना हो गए; अनोभि:— बैलगाडिय़ों द्वारा; अनडुत्-युक्तै:—बैलों से जुती; तम् अनुज्ञाप्य—वसुदेव से अनुमति लेकर; गोकुलम्—गोकुल के लिए ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : जब वसुदेव ने नन्द महाराज को इस प्रकार सलाह दी तो नन्द महाराज तथा उनके संगी ग्वालों ने वसुदेव से अनुमति ली, अपनी-अपनी गाडिय़ों में बैल जोते और सवार होकर गोकुल के लिए प्रस्थान कर गये।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के अन्तर्गत “नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट” नामक पाँचवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥