श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.52.12 
तत उत्पत्य तरसा दह्यमानतटादुभौ ।
दशैकयोजनात्तुङ्गान्निपेततुरधो भुवि ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—उस (पर्वत) से; उत्पत्य—कूद कर; तरसा—जल्दी से; दह्यमान—जलते हुए; तटात्—छोरों से; उभौ—दोनों; दश- एक—ग्यारह; योजनात्—योजन; तुङ्गात्—उच्च; निपेततु:—वे गिरे; अध:—नीचे; भुवि—जमीन पर ।.
 
अनुवाद
 
 तब वे दोनों सहसा उस जलते हुए ग्यारह योजन ऊँचे पर्वत से नीचे कूद कर जमीन पर आ गिरे।
 
तात्पर्य
 ग्यारह योजन ९० मील के लगभग है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥