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श्लोक 10.52.12  |
तत उत्पत्य तरसा दह्यमानतटादुभौ ।
दशैकयोजनात्तुङ्गान्निपेततुरधो भुवि ॥ १२ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—उस (पर्वत) से; उत्पत्य—कूद कर; तरसा—जल्दी से; दह्यमान—जलते हुए; तटात्—छोरों से; उभौ—दोनों; दश- एक—ग्यारह; योजनात्—योजन; तुङ्गात्—उच्च; निपेततु:—वे गिरे; अध:—नीचे; भुवि—जमीन पर ।. |
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अनुवाद |
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तब वे दोनों सहसा उस जलते हुए ग्यारह योजन ऊँचे पर्वत से नीचे कूद कर जमीन पर आ गिरे। |
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तात्पर्य |
ग्यारह योजन ९० मील के लगभग है। |
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