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श्लोक 10.52.13  |
अलक्ष्यमाणौ रिपुणा सानुगेन यदूत्तमौ ।
स्वपुरं पुनरायातौ समुद्रपरिखां नृप ॥ १३ ॥ |
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शब्दार्थ |
अलक्ष्यमाणौ—न दिखाई देते हुए; रिपुणा—अपने शत्रुओं द्वारा; स—सहित; अनुगेन—अपने अनुयायियों के साथ; यदु— यदुओं के; उत्तमौ—दो अतीव उत्तम; स्व-पुरम्—अपनी पुरी (द्वारका) में; पुन:—फिर; आयातौ—गये; समुद्र—समुद्र; परिखाम्—रक्षा-खाई से युक्त; नृप—हे राजन् ।. |
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अनुवाद |
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अपने प्रतिपक्षी या उसके अनुचरों द्वारा न दिखने पर, हे राजन्, वे दोनों यदु श्रेष्ठ अपनी द्वारकापुरी लौट गये जिसकी सुरक्षा-खाई समुद्र थी। |
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