ब्रह्मन् कृष्णकथा: पुण्या माध्वीर्लोकमलापहा: ।
को नु तृप्येत शृण्वान: श्रुतज्ञो नित्यनूतना: ॥ २० ॥
शब्दार्थ
ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; कृष्ण-कथा:—कृष्ण की कथाएँ; पुण्या:—पवित्र; माध्वी:—मधुर; लोक—संसार के; मल—कल्मष को; अपहा:—दूर करने वाली; क:—कौन; नु—तनिक भी; तृप्येत—तृप्त होगा; शृण्वान:—सुनते हुए; श्रुत—सुना जाने वाला; ज्ञ:—जानने वाला; नित्य—सदा; नूतना:—नवीन ।.
अनुवाद
हे ब्राह्मण, ऐसा कौन-सा अनुभवी श्रोता होगा जो श्रीकृष्ण की पवित्र, मनोहर तथा नित्य नवीन कथाओं को, जो संसार के कल्मष को धो देने वाली हैं, सुनकर कभी तृप्त हो सकेगा?
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