भागवत पुराण » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश » श्लोक 22 |
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| | श्लोक 10.52.22  | रुक्म्यग्रजो रुक्मरथो रुक्मबाहुरनन्तर: ।
रुक्मकेशो रुक्ममाली रुक्मिण्येषा स्वसा सती ॥ २२ ॥ | | शब्दार्थ | रुक्मी—रुक्मी; अग्र-ज:—सबसे बड़ा; रुक्म-रथ: रुक्मबाहु:—रुक्मरथ तथा रुक्मबाहु; अनन्तर:—इनके बाद; रुक्म-केश: रुक्म-माली—रुक्मकेश तथा रुक्ममाली; रुक्मिणी—रुक्मिणी; एषा—वह; स्वसा—बहिन; सती—साधु चरित्र वाली ।. | | अनुवाद | | रुक्मी सबसे बड़ा पुत्र था, उसके बाद रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश तथा रुक्ममाली थे। उनकी बहिन सती रुक्मिणी थी। | | |
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