श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.52.27 
द्वारकां स समभ्येत्य प्रतीहारै: प्रवेशित: ।
अपश्यदाद्यं पुरुषमासीनं काञ्चनासने ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
द्वारकाम्—द्वारका में; स:—वह (ब्राह्मण); समभ्येत्य—पहुँच कर; प्रतीहारै:—द्वारपालों के द्वारा; प्रवेशित:—भीतर लाया गया; अपश्यत्—देखा; आद्यम्—आदि; पुरुषम्—परम पुरुष को; आसीनम्—आसीन, बैठा; काञ्चन—सुनहरे; आसने— सिंहासन पर ।.
 
अनुवाद
 
 द्वारका पहुँचने पर उस ब्राह्मण को द्वारपाल भीतर ले गये जहाँ उसने आदि-भगवान् को सोने के सिंहासन पर आसीन देखा।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥