श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  10.52.36 
एवं सम्पृष्टसम्प्रश्न‍ो ब्राह्मण: परमेष्ठिना ।
लीलागृहीतदेहेन तस्मै सर्वमवर्णयत् ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; सम्पृष्ट—पूछा गया; सम्प्रश्न:—प्रश्न; ब्राह्मण:—ब्राह्मण; परमेष्ठिना—भगवान् द्वारा; लील—अपनी लीला के रूप में; गृहीत—ग्रहण किये गये; देहेन—अपने शरीरों से; तस्मै—उसको; सर्वम्—हर वस्तु; अवर्णयत्—कह सुनाया ।.
 
अनुवाद
 
 अपनी लीला सम्पन्न करने के लिए अवतार लेने वाले पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् द्वारा इस तरह पूछे जाने पर ब्राह्मण ने उन्हें सारी बात बता दी।
 
तात्पर्य
 गृहीत का अर्थ “पकड़ा” किया जा सकता है, अत: ठीक अंग्रेजी भाषा की तरह इसका अर्थ ‘किसी बात को ध्यान से समझना’ भी हो सकता है। यह इसका सूचक है कि भगवान् कृष्ण का दिव्य शरीर अनुभव किया या जाना जाता है या भक्तों द्वारा पकड़ा जाता है जब भगवान् अपनी दिव्य लीलाएँ प्रदर्शित करने के लिए आते हैं। ये लीलाएँ मनमानी नहीं हैं अपितु जटिल कार्यक्रम के अंशरूप हैं और बद्धजीवों में भगवान् के प्रति प्राकृतिक प्रेम तथा भक्ति जगाकर उन्हें भगवद्धाम ले जाने के लिए भगवान् द्वारा निर्मित तथा निष्पादित की जाती हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥